दीन दुनिया की कुछ खबर भी है
ज़िंदगी बोझ ही नहीं सफ़र भी है
मौत का तुझको कोई डर भी है
नाम पर तेरे तो इक कबर भी है
जिसने थामा है हाथ मेरा सदा
वो मेरा उस्ताद ए मोतबर भी है
हम चले जिसपे राह मुश्किल है
वो है पुरखार औ’ पुरखतर भी है
वो जो मंज़िल दिखाई देती है
उससे आगे का कुछ सफ़र भी है
दूर बादल में जो है बिजली सी
वहीँ नज़दीक अपना घर भी है
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