रहस्यवाद सर्वत्र जड़ा है
प्रेम का भी रंग चढ़ा है
राष्ट्र चेतना व प्रकृति में
इनका सब साहित्य सना है
‘प्रेम पथिक’ ‘कामायनी’
‘आँसू’ से ले कर ‘लहर’ तक
इतिहास को जीवित किया है
नाटकों में है सब जिया है
‘अजातशत्रु’ ‘चन्द्रगुप्त’
‘स्कंदगुप्त’ ‘ध्रुवस्वामिनी’
बोलिए है ज़िक्र किसका
बोल अब क्यों मौन है?
परदों के पीछे कौन है?
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उत्तर: जयशंकर प्रसाद
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