प्यार करना गुनाह है
रविवार, १५ जुलाई २०१८
आशिक़ी कमाल नहीं
जिंदगी की धमाल नहीं
बस पसंदगीहै
दिली बंदगी है
बस हो ही जाता
मन को खूब लुभाता
दिल खींचा खींचा रहता
आँखों को मजबूर करता
मै तो चुप हो जाता
पर दूसरों को क्या कहता?
दिल की चोरी पकड़ी जा रही
सब के सामने जग हंसाई हो रही।
अब तो एक ही चारा बचा
या तो सच को छिपाता
और कोने में छिप जाता
धीरे धीरे आंसूं बहाता।
प्यार का यही उसूल है
जिंदगी की किम्मत वसुलहै
कोइनहीं कहेगा “प्यार करना गुनाह है”
भले ही वो बेपनाह है।
हमें वो बिरुद नहीं चाहिए
बस दुनिया में थोड़ी सी इज्जत चाहिए
ना करे सब हमें लज्जित
किसी की नही होगी इसमें जीत।
हसमुख अमथालाल मेहता
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