अनमोल पल
शनिवार, १४ जुलाई २०१८
क्या थी वो अनमोल घडी?
जब मेरी आँखे लड़ी!
में देखती ही रह गई
मानो बस उसी में ही समा गई।
बस मिलते रहे
कहते रहे
एक दूसरे की बात सुनते रहे
भावनाओ के सागर में बहते रहे।
पल पल बीतता गया
हम से धीरे धीरे बिछड़ता गया
पेहले नहीं मिलते थे तो बेचेंन हो जाते थे
पर आज का माहौल जैसे हमने नहीं सोचे थे।
वो भी पल था
जो हमारा था
आज का पल है
वो निराशाजनक है
हम नहीं समझे
यूँही उलझे
तुझे मुझे कहने में ही पल बीत गए
हमारे सुनहरे सपने मिटाते गए।
समय नहीं रुकता
सबको यही कहता
मै किसी का नहीं
किसी को अपना बनाता नहीं।
हसमुख अमथालाल मेहता
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