उसे गुनाह नहीं कहते
जब हामी भर दी हँसते हँसते
कह रहे थे ‘ये क्या हो गया’?
हमने कहा ‘हवा का झोका था, आया और चला गया’
दिल को मनाने लिए, ख्याल बुरा नहीं
हमने भी उनका दिल कभी चुराया नहीं
बस मिल गया यूँ ही चलते चलते
पलके भी झुक गयी, धीरे से कहते कहते।
नया नशा था, पर अंदाज़ पुराना था
वो ही शबाब पर नया ज़माना था
प्यार के लब्ज़ अभी भी, जुबां पर नहीं आते
बीच में आते आते, थोड़ा सा रुक ही जाते।
शक्ल से वो हमें पसंद भी है
करते बात रूमानी, जैसे हम चाँद से है
बस क़यामत ढा देते है
जब कुछ लुफ्त यु ही उठा लेते है।
प्यार का अपनापन, अलग ही होता है
कभी दिल हसता तो कभी रोता है
नहीं चाहता कभी अलग होने को
बस प्रेरित कर देता है रोने को।
कुछ भी जीवन पथ पर
हम तो चल पडे है बस बेखबर
कंटक बिछे हो या फूल गुलाब
हम तो फिर भी कहेंगे ‘लाजवाब, लाजवाब ‘
जीवन में किसी के संग होना ही भाग्य है
मिल के बिछड़ जाना दुर्भाग्य है
सच्चा प्यार किसी किसी को ही मिलता है
कोई मिल पाता है तो कोई बिछड़ जाता है।
ये सब जज्बाती बातें है
आँखों से रुलाती और मुंह से कहलवाती है
एक शब्द का फेर कहर ढा देता है
प्यार के पड़ाव में जहर का घोल बना देता है।
जरुरत पड़ी तो चुपचाप हंस दूंगा
हामी भरेंगे तो बाहों में कस दूंगा
एहि मेरा अंदाज़ है और यही लाक्षणिकता
कहने को झिझक नहीं बस छलकती है प्रामाणिकता
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