अपने ख़याल से
कभी तो उजाला होने दो
बात पूरी कहने का मौक़ा तो दो
फिर ना कहना बारिश क्यों हुई?
नादानी से गलती क्यों हुई?
कभी न सोचा था आप शायरी में माहिर होगी
अपनी परख में हीर साबित होगी
हम तो बुध्धु के बुध्धु ही रह गए
आप शायराना अंदाज़ में बहुत कुछ कह गए।
हम ठहरे एक सादे से लेखक
बस कभी न लिया किसी से सबक
अपनी ही भावनाओमे बहते गए
अच्छे फूल देखे तो बहकते गए।
हर फूल की खुश्बू अलग होती है
जिस में अपनी एक महक होती है
जो हर दिल को आकर्षित करती है
और अपने आप में बयान करती है
गुनाह तो हम कर लेते है
पर जुबां ब्यान कर देती है
हम नजरे चुराने पर मजबूर हो जाते है
सपने भी सारे चकनाचूर हो जाते है।
कोई कहे या ना कहे, चर्चा हो ही जाती है
बस चाहत की भनक लग जाती है
चर्चे बस आम हो जाते है, और अलग से एक पहचान
सब घर पर आ जाते है ‘मानो या ना मानो में तेरा मेहमान’
शायरी में हमारा लिखना गलत हो सकता है
सिद्धहस्त लोग इसे देखकर कहेंगे ‘क्या बकता है ‘
पर हम ठहरे नदी की मस्त लहर की तरह
दौड़ पड़ेंगे गांव गांव और शहर की तरफ।
कुछ तो कह देना अपने अंदाज़ से चन्द लब्ज़
हम भी पढ़ मेंगे उसे हलके से और सहज
कुछ तो हम समज ही लेंगे अपने ख़याल से
लेकिन दूर जरूर रहेंगे इन सब बबाल से
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