जड़ और चेतना के समागम ने
किया एक नई सृष्टि का आह्वान
जब चेतना प्रस्फुटित हुई
जड़ के मानस पटल पर।
प्रकृति में आया एक नया भूचाल
झकझोरा प्रकृति की नीरवता को
गतिमान हुआ मारूत
सुषुप्त नदियां करने लगी गायन।
उभरने लगी नई-नई आकृतियां
प्रकृति के गर्भ से बिखरने लगी
जीवन की प्रबल शास्वत धारा
उद्वेलित हुआ नक्षत्र-तारा।
नही कोई साक्षी सृष्टि की शुरुआत की
नही कोई अवशेष सृष्टि के बिनाश का
फिर भी प्रबल गति से बहती जाती
जीवन धारा की वाङ्मय काया।
सर्वाधिकार सुरक्षित
@ रमेश राय
१६/१२/२०१८
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