एक यायावर की मुस्कान लिए
जो आगे बढ़ता रहता है
नीजता का ज्ञान उसी को
यह पागल मन कहता है।
चन्द जीवन के लम्हों में
बदल जाती है जीवन काया
हुआ ग्रीष्म का अवसान अभी
आया फिर एक नया सबेरा।
पहली बूंद पड़ी जब काया पर
मचल गया अभिषप्त सबेरा
जैसे कोई अलग जगाया
छू लिया अंतरतम काया।
पहली बूंद की आहट से
जैसे किया दस्तक यौवन ने
हुई किशोरी अब रजस्वला
नये सृष्टि का बिगुल बजाया।
जब उमड़ घुमड़ कर बादल आयेंगे
दूर देश से कोई आयेगा
प्रणय का सुर लहरायेगा
मचल उठेगी जीवन काया।
सावन भादो की अंधेरी रात में
मिलेंगे दोनों छुप छुप कर
कभी चंद्रमा की चांदनी में
फिर कभी अंधेरी रात में।
तब तुम भी कोई गीत लिखोगे
जब शब्दों ने वाण चलाया है
शब्द और वाणी के प्रणयन में
एक नया पैगाम लाया है।
सर्वाधिकार सुरक्षित
रमेश राय
20/11/2018
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