‘कृष्णमय कृष्णमय ‘
में नहीं मानती कुत्ते की दुम सीधी हो सकती है
आदमी चाहे लाख कोशिश कर ले भूख कभी मिटती नहीं
बन्दर भला कभी गुलांट लगाना भूल सकता है?
वही हाल आपका है दिल हमारा मानता ही नहीं है।
पूरा जीवन तो आपने दांव पे लगा दिया था!
अपनी ही मर्जी से हमें छोड़ दिया था
में ठहरी अबला, अपना सब कुछ गँवा चुकी थी
आपके लिए में परायी और मर चुकी थी।
कामुकता जीवन से कभी जा नहीं सकती
खुद का कहा हुआ में कतई मान नहीं सकती
आप कई बार अपने वचन तोड़ चुके हैं
मैंने दिए सब मौके आप गँवा चुके है।
ना में कभी पहले भटकी थी
और अपने पथ पर अटकी थी
मेरे मन में बस एक ही छबि बार बार आती थी
में अपने आपको कोसती और रो जाती थी।
सम्बन्ध बार बार नहीं बनते
एक बार जुड़ने के बाद कभी नहीं टूटते
यही तो जीवन का फलसफा है
जो नहीं मानते इसके वो सब बेवफा है।
मनुष्य जीवन बेदाग़ निकालना चाहिए
जो मिले उसमे संतोष करना चाहिए
वैसे तो देह की भूख और धन लालसा मिटती नहीं
“कई सारे दोष है मौजूद” उसकी तो गिनती ही नहीं।
मेरे दिल के तार उसके साथ बंधे है
आप संसारी पूरी तरह से अंधे है
मैं अपना रास्ता तय कर चुकी हूँ
बस अब तो में ‘कृष्णमय कृष्णमय ‘ हो चुकी हूँ।
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