सीने में आस
ये मेरी आशाए
सीने में आस लगाए
दबी से आवाज़ में
पूछती है ‘कहाँ हु में ‘?
जाना कहाँ है मैंने?
नहीं सोचा मैंने
पर सुबह हो चली है
मन में खलबली है।
ये सब संसार
लगता मुझे सुख का अंबार
नहीं है सपनों का गुब्बार
बस दिखाता आशा बार बार।
कुछ करना है
परायों को अपना बनाना है
साथ में लेकर चलना है
थोड़ा सा सबको मनाना है।
छोडो ये सब नुकीली राह
नहीं भरना दिल में आह
सब कुछ ठीक ही होगा
उसकी बनाइ जन्नत में भला ही होगा।
हमने नहीं बिगड़ना है माहौल
बच्चे खेले और करे किल्लोल
रहे सब शांति से ओर खुशखुशाल
नहीं होना है हमने बेहाल।
बस छोटी सी कल्पना
ना कोई करना मना
सबने मिलकर करना है पूरा
ना हो अपनी कामना और सपना अधुरा।
Leave a Reply