सहेलियां कहती है
मिली है जिंदगी जिनके लिए
हम आहे भरते थे जिनके लिए
आज सुनहरा दिन लग रहा
मेरा जिस्म पूरा अलग से दिख रहा।
कभी नहीं सोचा था
अभी अभी ही आंसू पोछा था
मन उधेड़बुन में था की अब क्या करें?
किसको पूछे और किसको कहें।
विश्वास नहीं हो रहा
ओर बिन बादल बारिश पर भरोसा!
हरगिज़ नहीं कर सकती
फिर भी जीने को कैसे मना कर सकती?
मिल ही गयी है तो इनकार नही
जिऊंगी तो भी सरोकार नहीं
आ जाते है बार बार सामने यहीं
मजबूर कर देते है कुछ कहने यहीं।
कोशिश करुँगी दिल को मनाने को
हाँ भी कर दूंगी आने को
पर ज्यादती मत करना सब के बिच
में नहीं आउंगी समंदर के ‘बीच’ बिना सोच
कोई नहीं पूछता ये है प्यास कैसी?
दिल क्यों दीखाता है उदासी?
में बार बार लाती हूँ हंसी
सहेलियां कहती है ‘तू तो फंसी ‘
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