बस वोही जाने
चले है चरखा
पर आपने नहीं परखा
कई हो गए प्यारे
क्यों नहीं सोचते है सारे।
छोड़कर जाना
फिर वापस नहीं आना
फिर भी इतना झल्लाना
जिंदगी से भी नहीं मुस्कुराना!
दो कोडी के इंसान
क्या है तेरी पहचान?
मिट जाना है तूने किसी पल
छूट जाएगा उस वक्त पसीना और मल।
मेरा मेरा क्या करता है?
जो करता वोही भुगतता है
यही सनातन सत्य है
और रहा हमेशा सातत्य है।
ये चक्र उसीका चलाया हुआ है
जिस से तू अनजान रहा है
किसको अपना कर बैठा है?
जिसने पैदा किया है उसीको ठेंगा दिखा रहा है?
ना कर इतनी नाफरमानी
छोड़ सारी बेईमानी
बही चलेगी नादानी
तू छोड़ चलेगा ये दुनिया फानी।
तू ही कहता है ना ‘ये है मेरे भगवान् ‘
मेरे दाता ओर कदरदान
फिर क्यों तुला है उसकी पहचान बनाने?
उसकी दुनिया है ‘बस वोही जाने ‘
Leave a Reply