देश का सपूत
आज देशपर मंडरा रहा है साया
सबकी निंद उड़ा रखी है जब से वो है आया
हथकंडे सभी अपना रहे है मानो देश मधुमक्खी का है छाता
आंसू सभी बहा रहे है जैसे उनका दिल छलिनी हो जाता
ना कभी सोचा कैसे जी रहे है लोग?
प्याज सौ रुपये तक और टमाटर नदारद
खाये तो क्या खाये? रोटी, दाल अब हो रही है मुश्किल
जीवन नहीं जिया जाता अब लगता है बोझिल
एक सितारा आया है फलक पर
जिसकी गूंज उठी है और और दीखता है पलकभर
दिखा रहा है आइना और सपने सुहाने
अब आप आज उसे माने या ना माने!
इनहोने घर भर लिए है अपने अपने
कर दिए है वतनवालोंको बेगाने
धर्म, जातपात और क्षेत्र की कर दी है बर्बादी
बांग्लादेशि ने बढ़ा दी है यहाँ आबादी
आतंकवादी ने सर उठा रखा है
पकिस्तानियों नाक में दम लाके रखा है
ऐसे में हमें एक सरदार अपना चाहिए
जो देश की शान बढाए और हमें मसीहा चाहिए
देश का धन जिन्होंने अपना समज रखा है
दे ऐसे रहे है जैसे अपने घर से लुटा रहे है
क्यों आज तक वो कुछ नहीं कर पाये?
कब देश सो पायेगा और मिलेंगे अमन के सायें?
सही बात है ‘देश कभी भी तरक्की नहीं कर सकता’
जब तक मुखिया मुंह से कुछ नहीं कहता
देश नरक की गर्ता में डूबा जा रहा है
हर देशवासी अपनी किस्मत के आंसू बहा रहा है
उनके अमन चेन कम नहीं होते?
अपने दाम और वेतन रात के रात में ही बढ़ा दिए जाते
गरीब के हाथ में कटोरा थमाकर कहते है
‘लेपटॉप भी दे देंगे, क्योकि वो फिर भी सस्ते है
क्यों देश को झेलनी पड रही है गरीबी कि मार?
क्यों ये लोग कर रहे है सियासी कि चाल?
क्या ये देश युहीं फिर बिखर जाएगा?
कोई देश का सपूत आकर नैया पर नहीं लगाएगा?
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