दुश्मनी निभा लेते है
दुःख भी यहाँ सुख भी यहाँ
बिना सोचे में जाऊ कहाँ
रोना यहां हंसना यहां
सब से फिर बिछड़ना कहाँ।
तेरी हर अंगड़ाई
मौत की नींद सुलाई
ऊपर से लगे बड़ी हरजाई
जान लेवा आ गयी है महंगाई
हम तो जी लेते है
ऊपर से रो लेते है
निचे की कमाई से हंसना जाना
दुःख दुजे का कभी ना जाना।
जो मर रहा है, मरे जा रहा है
बाकी सब सुख की नींद, सोये जा रहा है
सब के लबो पर, गरीब का ध्यान है
पर सही तकलीफ से सब अनजान है।
जान की कोई कीम्मत नहीं
फिर भी कहने की हिम्मत नहीं
हम सब उनके लिये रोते रहते है
असल में अपने सपने ही संजोते रहते है
गरीब और गरीबी असली मुद्दा नहीं है
पर वो हमेशा दबा ही रहे’ यही मुराद है
क्यों हम हरबार उनका मजाक उड़ाते रहते है?
क्यों ‘दीनदयाल’ को हंसी के पात्र बनाते रहते है।
जानवर भी अपने बच्चों को खा जाते है
भूख में वो सही पहचान नहीं कर पकाते है
हम तो इंसान है और भलीभांति जानते है
तो फिर क्यों उनको जान बूझकर मौत के मुंह में धकेलते है?
गरीब को रोटी में भगवान नजर आते है
तरीका उसे आसान लगता है पर मंजूर नहीं है
वो किसी की रोटी को छीनना नहीं चाहता है
पर अपना हक़ तो जरूर मांगता है।
गरीब को रोटी में भगवान नजर आते है
तरीका उसे आसान लगता है पर मंजूर नहीं है
वो किसी की रोटी छीनना नहीं चाहता है
पर अपना हक़ तो जरूर मांगता है।
लोग अभी भी उसे कठपुतली समझते है
उनकी भागीदारी को वो हलके से लेते है
समाज को पुरे जाती और धर्म के नाम पर बाँट लिया है
कुछ भी हो जाय तो ‘एक दूसरे के नाम पर ‘दुश्मनी निभा लेते है
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