ताजमहल
बुधवार, ४ जुलाई २०१८
हर पत्थर को मैंने तराशा
पर नहीं छोड़ी आशा
वो तो राज बनकर रह गया
मई कभी दुसरा ताजमहल नहीं बना पाया।
वो हो संगेमरमर
खूबसूरती से भरपूर
पर में नाही शहंशाह था
और नाही मुमताज का कोई सपना था।
ऐसा भी हो सकता है
प्यार में कमी का दिखना मूल कारण हो सकता है
जिस बेहतरी के लिए में कोशिश कर रहा
उसमे में सरेआम विफल रहा
ताजमहल बनाना मेरी मुराद थी
जीवन एक मकसद और मीसाल भी थी
मुझे लगता है वो प्यार नहीं झलक रहा था
ताज बनाने का सपना अधूरा हो होए जा रहा था।
कइयो ने ने ये वाद किया होगा
“ताज” बनाने का संकल्प भी दोहराया होगा
पर वास्तविकता से मुंह मोड़ लिया होगा
ताज बनाने का सपना अधूरा ही रह गया होगा।
हसमुख अमथालाल मेहता
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