जिन्दगी भी संवार देगी
मैंने धीरे से आवाज लगाई
बस भीड़ में दबकर रह गयी
मेरी दौड़ सिमित थी और सिमित रह गयी
लोग आगे बढ़ गए और में देखती ही रह गयी
वो भीड़ में अकेला था
मासूम सा चेहरा था
पर गमगीन और उदास था
मेरे पीछे बना हुआ देवदास था
मैंने भी दिल दे दिया था
बस मिलने का वादा भी किया था
मुझे नहीं पता था भीड़ इस कदर बढ़ जाएगी!
मेरी महोब्बत का इस तरह मजाक उड़ाएगी
उसके चेहरे की लकीरे मुझे असमंजस में डाल रही थी
‘अलग हो जाने के डर से आतंकित कर रही थी ‘
मैंने सोचा मेरी दौड़ कहा तक जायेगी?
ये सब दुविधाए कैसे समलेगी?
मेरा निजी जीवन निष्काम और पाक रहा है
मैंने सपने में भी किसी का दुःख नहीं चाहा है
में उसकी चाहत का मजाक बनते देख नहीं सकती?
यही मेरी घड़ी है उसका इन्तेजार में नहीं कर सकती
मैंने आव्हान किया और हाथ आगे बढ़ा दिया
‘उसने भी सच्ची मोहब्बत का रंग दिखा दिया ‘
थामा लगन से हाथ और जामे अंजाम दे दिया
हमें गलत इल्जाम देने की फिराक से बचा लिया
कौन कहता है प्यार में ताकत नहीं होती?
कौन सोचता है किनारेको किश्ती नसीब नहीं होती?
करो दिल से पुकार नदी अपना रुख बदल देगी
प्यार तो ठीक है पर साथ में जिन्दगी भी संवार देगी
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