कुदरत का तोहफा
बुधवार, २७ जून २०१८
मेंआँखों में ही देखता रह गया
उसका दर्द मानों मेरे में समा गया
क्या कह रही थी वो अपनापन से?
मै तो अंजान सी से।
कुछ तो था उसमे!
में आ गया सकते में
अनजान व्यक्ति और अनगिनत आंसू
मुरझाया चेहरा और वदन रुआँसु।
मैंने चाहा में पास जाऊं
उसे थोड़ी सी ढाढस दिलाऊं
हो सके तो दिल के करीब ले आऊं
दो शब्द दोस्ताना केहकर अपना कहलाऊँ।
पर वो वेबाक देखती रही
मेरे कहने का कोई असर नहीं
वो यातनाए झेल चुकी थी
संसार की ज्यादतियों से तंग हो चुकी थी।
मैंने आगे हाथ बढाया
पूरी सुरक्षा और जवाबदारी का भरोसा दिलाया
मेरी जिंदगी ने एक अंश का वादा किया
उसके चेहरे पर एक मंद मुस्कान ने जन्म ले लिया
“तुम ने मुझ क्यों दलदल से बाहर निकाला “?
मेरी जिंदगी मे हो गया थाउजाले का तबादला
आज में ताज़ी हवा को महसूस कर रही थी
जीवन में आए बदलाव को कुदरत का तोहफा समज रही थी।
हसमुख अमथालाल मेहता
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