अपनी बंदगी से
रविवार, ५ अगस्त २०१८
नाम ही मेरा हसमुख
कभी नहीं ग्लानि मुख
सोचता रहता हूँ हरदम
कभी ना आए जिंदगी में गम।
हरदम हसाता रहता हूँ
रुलाने का प्रयास मभी नहीं करता हूँ
जहाँ तक हो सके दुःख में भागीदार बनता हूँ
उसके सुख को मेरा सुख समझकर हँसता रहता हूँ।
जीवन में ना आए कभी पतझड़
ना मभी किसीका संसार हो जाए उझड़
ना रहे कोई उखड़ा उखड़ा
जिसे ना सुनना पड़े किसीका दुखड़ा।
अब तो मुझे आदत सी हो गई है
जिंदगी से मुहोब्बत हो गई है
ना वो सताती है और नाही दिख देती है
बस सिर्फ हर्ष के आंसू ला देती है।
मै कहता रहता हूँ “ऐ जिंदगी अब तो सबर कर “
कर अपने बंदो को थोड़ा तो बक्शा कर!
ऐसी भी क्या बेरुखी को दिखलाना?
अब कभी भी उनको ना रुलाना।
ना अश्रु आए आँखों से
हंसी और दुखों से
बस खुशखुशाल रहे सब अपनी जिंदगी से
और प्यार से खुश रहे अपनी बंदगी से।
हसमुख अमथालाल मेहता
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