हवा हवा
बदल गए हालात
नहीं रही वो आदत
पहले इज्जत से बुलाते थे
अपने पास बिठाके पूछते थे।
आज वो एहसास नहीं
किसी पे भरोसा नहीं
कब कोई इज्जत पे हाथ डाल दे
कमाई हुई साख राख में मिला दे।
आज ढाई अक्षर का कोई मतलब नहीं
‘आती हो खंडाला ‘ का चलन बढ़ा यँही
ना किसी का डर और नाही घरवालों की परवाह
बस चल पड़े है उसी और जहाँ नहीं मिलती वाहवाह।
चेहरे पर सबके धुंध है
कोई अज्ञात भय जैसे अंध के पास है
ना देख सकता है ना बोलनेका साहस है
बस ना कहनेवाली सिर्फ अपनी सांस है।
जब जमाना बदला तो रीत भी बदल गयी
नयी चाल, नयी भात कपड़ो में आ गयी
अब एक हाथ में मोबाइल है तो दूसरे हाथे एक्टिवा
बस सुनाई पड़ता है ‘ हवा हवा ‘
Leave a Reply