सर्व सनातन
पत्ते पत्ते में मै जी रहा हूँ
मौसम के संग संग ढला रहा हूँ
हर मौसम के रंग मै रंगा हूँ
पतझड़ की मस्ती में बह रहा हूँ
हर फूल का रंग गंध मुझ में
हवा के झोंकों में लहरा रहा हूँ
कभी बन गुलाब काँटों में रहता
बन कमल कीचड़ में खिल रहा हूँ
नीलाम्बर मेरा परिधान होगा
सरितायें होंगी मेरी धमनियाँ
चाँद सूरज बन धरा निहारूं
मुक्त पवन सा स्वयं विचारूं
अभी दृश्य हूँ मै
फिर अदृश्य हूँगा
दृश्य-अदृश्य बीच
सनातन हूँ मै
Leave a Reply