भूल जाया करो
गुरुवार, सितम्बर २०१ ९
छायारहा उसका मनहूस साया
मुझे उसका चेहरा बिलकुल नहीं भाया
उसने मुझे कितना सताया?
बार-बार मुझे रुलाया।
कुछ ना कुछ बहाना बना देता
मेरी हमेशा पिटाई करवा देता
में चुप-चाप सहन कर लेता
यही सोचकर की वो अपने में सुधार कर लेगा।
ना ऐसा कुछ हुआ
और नाही कोई परिवर्तन हुआ
मेरी धीरज का बांध टूटता गया
बस मन ही मन क्रुद्ध रहता गया।
फिर क्या था?
मुझे पढ़ाई के लिए बाहर जाना था
बस मन बहुत ही प्रफुल्लित हो गया
मन का सब मेल धूलकर बह गया।
नई दुनिया और नए लोग
नाहीं किसी को कोई विचित्र रोग
सब ने खुले मन से मुझे अपनाया
मानो मुझे नया जीवन मिल गया।
जीवन का फलसफा अब मुझे समझ में आया
क्यों मैंनेइतने सालों को गंवाया?
यह चीज़ तो पहले भी हो सकती थी
मेरे अरमानों कोतरोताजा रख सकती थी।
बस उसका चेहरा बारबार सामने आ जाता है
पर दिल मुझे समजाता है
“अपनी दुनिया को इतनी छोटी मत किया करो “
जो हो गया है उसे भूल जाया करो।
हसमुख मेहता
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