में आंसू भी पोछ लूंगा
मदहोश करे मुझे तेरी ये आँखें
जग ना जाने बस दूर से ही देखे
अंतर रोये पर जुबा ना बोल पाये
मेर बोल तेरे करीब कैसे आये?
मैंने पूछा ‘अय तुम बहांरो ‘
मुज को इस गम से उगारो
आप के फूल मुझे यूँ बहकाएं
बीती बातोंकी याद भी दिलाएं।
पता नहीं मुझे पतझड़ का आलम
तुम मुझे कभी छोड न जाना सनम
में डूबा जा रहाथा ऒर ऊपर से ये गम
बातें कर के, कर लो उसे कम।
चाँद हमें कभी अच्छा नहीं लगता
पता नहीं फिर में क्यों नहीं समजता?
दाग तो है फिर भी तुम पवित्र लगते हो
सिर्फ चांदनी की वजह से तुम बहके हो।
मुझे पानी का बहाव बहुत अच्छा लगता है
उसमे तैरना जैसे अपने आप में सुहाता लगता है
मुझे समंदर में मिलने की इतनी जल्दी नहीं
प्यार का सही मतलब तुम समजी ही नहीं
में हवा के एक झोके से ही हड़बड़ा जाता हूँ
मन उखड़ा उखड़ा और भीतर से सिकुड़ता जाता हूँ
उनकी मंझिल हम से दूर हो ही नहीं सकती
लिखा है तक़दीर में पास रेहना तो दूर रह ही नहीं सकती।
हर बार में तेरे द्धार आया, और तूने ठुकराया
प्यार तो नहीं पनपा पर बहुत ही गहराया
बस तूने मुझे पास तो नहीं आने दिया
पर कभी दिल से भी अलग नहीं दिया।
प्यार का अंजाम मुझे मालूम तो नहीं
पर उसकी खुश्बू से अनजान इतना भी तो नहीं
वो जब भी मिलेगी ‘ये जरूर से पूछूंगा’
वो रोयेगी तो आंसू भी पोछ लूंगा
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