डोर से बंधी, आकाश को छूने चली …
क्या हमारा जीवन इस पतंग की तरह नहीं है
हम सब भी किसी न किसी डोर से बंधे है
और आकाश को छूना चाहते हैं
किसी की डोर लम्बी है, किसी की मोटी
किसी की मज़बूत, किसी की कमज़ोर
फिर भी सभी की कोशिश यही रहती है
की आसमान को छुएं, हवा में लहराएं
ये भी अजीब है की
डोर का रखवाला ज़मीन से जुड़ा है
पर सपने आसमान पर बनना चाहता है
जानता है खतरों को
फिर भी मानने को तैयार नहीं है
कट जाए जो डोर से पतंग
परेशां होता है
फिर भी उड़ाने से बाज़ नहीं आता
देखना चाहता है अपनी उड़ान को
वो पतंग ही क्या जो ज़मीन पर रहे
और आसमान का मज़ा न चखे
दीवार पर टंगी रहे
हवाओं से जूझना नहीं सीखे
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