फ़तेह तो होके रहेगी
शुक्रवार, १७ अगस्त २०१८
नहीं जानता मैं कोई कारण
लोग क्यों केहते रहते है अकारण
जहर का मारण है जहर
यहां मुर्दों का है शहर।
बीना वजह जान ले लेते है
अपने को ही पराया कर देते है
बगल में छुरी और रामराम जपते है
हर सांस में दूसरे को जताते है।
प्यार के प्रहरी बने बैठे है
अपना ही रूतबा दूसरों पर थोक बैठे है
ना जाने इनकी अक्कल कब ठिकाने आएगी?
कब तक मानवता को रुलाती रहेगी।
मेरा अपना कोई वजूद नहीं
अपने को मैं खुद जानता नहीं
मैं निकल पडा हु खुदा को ढूंढ़ ने के लिए
रास्ता मुजे मिलता नहीं।कोई तो बताए मेरे लिए।
नगर नगर, गाँव गाँव
नहीं टिकते मेरे पाँव
क्या होगा मेरा दुसरा दांव?
आकाश में कौए करते रहते है कांव कांव।
फिर भी मुझे विश्वास है
जबतक सांस में सांस है
आस मैंने नहीं छोड़ी है
जिंदगी को मैंने नहीं तरछोडी है।
प्यार ही तो है मेरा जज्बा
मैं रखूंगा कायम उसका रूतबा
भले ही कोई जारी कर दे फतवा
फ़तेह तो होके रहेगी जब होगा मिलनवा।
हसमुख अमथालाल मेहता
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