हमारे देश का अस्त है
ये मिटटी मेरे वतन की है
बात जतन की नहीं है
बात जान की नहीं है
बात सिर्फ आनबान और शान की भी है।
क्या कोई सोच सकता है?
सरे आम कया कोई छेड़ता है?
हमें इस बात का हमेशा गर्व महसूस होता था
लेकिन आजकाल शर्म का एहसास होता है।
क्या माँ, , बेटी और बहन का कोई अधिकार नहीं है?
क्या स्त्री जाती के कोई उपकार नहीं है?
एक गंगोत्री को तो हम मैली कर चुके है
क्या हमारी जोली को भी लीलाम करने जा रहे हो?
‘कब लाज लूट ले’ वो ही फिराक में गुमते है
कुकर्म करने के बाद भी उनका मन नहीं भरता
देखने वाले राहगीर भी नजदीक नहीं फरकता
बस सब मूक बने है ओर सिर्फ़ अपने आपको कोसता।
एक गंगा को हम उपर से निचे ले आये
कई आस्थाए जुडी और सपने भी संजोये
पर ये क्या दिन आज आये?
नारी के दुश्मन भेड़िये है घात लगाए।
जिधर भी देखो बस आँखे गिड़ाए रखते है
‘कब लाज लूट ले’ वो ही फिराक में गुमते है
कुकर्म करने के बाद भी उनका मन नहीं भरता
देखने वाले राहगीर भी नजदीक नहीं फरकता
बस सब मूक बने है
और अपने आपको निसहाय पाते है
कहां से आएगी मिटटी की खुश्बु?
जब की चारो और फैली है सिर्फ़ गंदगी।
नारी त्रस्त है
उसका जीवन अस्तव्यस्त है
हम भी सुनकर परस्त है
क्या हमारे देश का असल में अस्त है?
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