सिर्फ इकरार
सोमवार, २४ सितम्बर २०१८
महोब्बत नयी नयी नहीं होती
बस वो तो अचानक हो जाती
वो केहकर कभी नहीं आती
बस सीधी आकर दस्तक ही दे देती।
ना तकरार बस, हो सिर्फ इकरार
लाभ ना पड़े बीचमे दरार
दिली हो बीच में एक करार
विशवास ही रहे बरकारार।
अभी तो मिलना हुआ है
फूल का खिलना शुरू हुआ है
पंखुडिया खिले गी, आवारगी बढेगी
बस प्यार का इम्तेहान भी लेगी।
बढ़ रही दिल की धड़कन
चेहरे पे छा जाता हल्का सा मायुसपन
पर मुझे लगता, उसमे अपनापन
फिर कैसे कहूं ये है पागलपन?
नया तो इसमें कुछ नहीं
प्यार का आभास है सही
वो नहीं बताते अपना क्या है रुख?
बस मन में लग जाता है थोडा सा दुःख।
अब तो आन मिलो मेरे खातिर
ना करो मेरे दिल जो इतना आतुर
अब सम्हालना अपने को बड़ा मुश्किल
नहीं जानता में क्या होगा कल।
हसमुख अमथालाल मेहता
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