शहीद नहीं कहलाता
सोमवार, २८ मई २०१८
लिखते तो सभी है
ज़िंदा भी सभी है
अंदाज अपना अपना है
सब का एक सुनहरा सपना है।
ज़िंदा होने पर एहसास नहीं होता
पढ़ते है या नहीं, आभास जरूर होता
उनका रुख जरूर अनुरूप होता है
यह बात उनके पत्रों से प्राप्त होती है।
कद्र तो जरूर होती है
सन्मान भी दिलाती है
सब के दिलों में, एक उच्च भावना बसती है
लेखक, लेखिकाओं की जरुर से सन्मानतिहै।
यह एक पवित्र कार्य है
यह हम सबको स्वीकार्य है
हो सकता जीवनकाल में, संभव ना हो पाया है
पर बाद के काल मे भी सर्वोच्च सन्मान दिया है।
कहते है “नेकी कर और कुए में डाल”
आपकी कृतियों का रखा जाएगा ख्याल
आपका कर्तव्य बनता है की, सर्वश्रेष्ठ कृति का प्रदान करें
अपने ख्यालों की मंच पर पुष्टि करे।
कवी तो सब होते है
मंसूबा भी साफ़ होता है
नाम सब का एक साथ बड़ा नहीं हो सकता
मर ने के बाद भी हर कोई शहीद नहीं कहलाता।
हसमुख अमथालाल मेहता
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