वक्त का तकाजा है
कहते है’ जो हंसा ‘
उसका घर बसा
जो भी रोया
उसने बहुत ही खोया.
जो सोनल हो
दिल की कोमल हो
स्वाभाव से निर्मल हो
उसका क्या वर्णन हो?
जिसने फूल बिखेरना हो!
बस ख़ुशी हो बटोरना हो
उसकी क्या तारीफ करना?
वो तो खुद ही है एक तवारीख का पन्ना.
चेहरा जैसे फुलगुलाब
फिर उसपार ऐसा रुआब
मांनो आनेवाला है सैलाब!
बस दिल थामिये जनाब।
कुदरत का एक नूर
फिर उसपर आया सौंदर्य का पूर
बहारे भी शर्मा जाय ऐसा हास्य
हम भी क्यों रखे थोडासा भी आलस्य?
जो खुद एक नगीना हो
उसपर कमाई नामना हो
कवियत्री और अभिनेत्री
अपने जीवन की खुद चरित्रि।
आप हंसी बिखेरते रहे
हरकोई उसे दिल से देखता रहे
अपने दिल से सोचे ‘ऐसा क्या संभव है ‘?
हमें तो इसका खूब अनुभव है।
आज खुशनुमा बहार है
हमने भी लिया थोड़ा आहार है
लिज्जत से खाया और आपको देखा
बहुत कुछ जीवन के बारेमे भी सोचा।
हर कोई हंसी बरकरार रख नहीं सकता
उस के पीछे का भेद कभी बता नहीं सकता
चेहरे पे हसीन भावोको व्यक्त करना एक कला है
गंमगिनी होते हुए भी उसे छिपाना वक्त का तकाजा है
Leave a Reply