लौटा दे कोई
लौटा दे कोई मेरा खोया बचपन
याद आ रहा है मासूम लड़कपन
खा जाते थे पडोसी का खाना
वो बॆरोक-टोक आना जाना
स्कूल से भागकर मटरगश्ती
दोस्तोंसे मिलकर खूब मस्ती
घुमा करते थे जैसे बड़ी हस्ती
कोई फिर्क्र नहीं बस मौजमस्ती
किसी की खिंच ली पीछे से चोटी
गायब कर दी टिफिन से रोटी
लगा दिए पीछे से शाही के धब्बे
मुंह फुलाकर लगते थे सभी चौबे
एसा वचपन फिर लौटा दो
जवानी को फिर से टाटा करवादो
ना होना है हम को बड़ा
नुक्सान ज्यादा है नफ़ा थोड़ा
लोग भी कहते थे मुझको ‘लाला’
बनाते थे मुजको गोकुल का ग्वाला
क्या ठाठ होते थे खाने पाने में?
सब कुछ मिल जाता था रोने में
माँ भी करती थी लाड़ सबसे ज्यादा
में भी रहता था अकडू और आमादा
सताता था सबको और नचाता था
अपनी ही दुनिया खुद रचाता था
मै खुद ना चाहूँ बड़ा होना
बड़ा का मतलब है खूब रोना
जीवन में कोल्हूका बेल बन जाना
सब का भार झेलना और गंभीर हो जाना
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