लिखता जाऊंगा
बुधवार, ८ अगस्त २०१८
ना में अंधा भक्त हूँ
और नाहीं आसक्त
बस वो ही लिखता हूँ
जो में देखता हूँ।
लिखने में मजा आता है
जैसे मन का तूफ़ान थमने लगा है
मन उड़ता रहा है उन भवनाओं पर
जीनको मानो आ गए हो पर।
मन में नहीं है विडंबना
बस एक ही रहती है तमन्ना
लेखनी मेरी चलती रहे
लोगों के दिल मेरी कवितायेँ बस्ती रहे।
ये उन्माद नहीं
सच्ची हकीकत रखी है यही
हो सकता है थोड़ा सा ज्यादागया हो
बस सही चीज का फ़रमाया हो गया हो।
न कोई धन की लालसा
नाही कोई मन में आशा
बस हताशा कोसो दूर रहे
और मुझे परेशान ना करें।
मै तो लिखता जाऊंगा
और वैसे ही चला जाऊंगा
पर मेरे लिखे काव्य गूंजते रहेंगे
सब लोग उसे गुनगुनाते रहेंगे।
हस्मुख अमथालाल मेहता
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