याद आती है
रविवार, २८ अक्टूबर २०१८
बस याद आ जाती है आपकी परछाइयाँ
वो मधुर पल और उसमे दिखती अच्छाइयां
सब लोगों को प्रेम से बुलाती
हालचाल पूछती और खाना भी खिलाती।
नहीं है वो आज हमारे बीच
बस उसकी यादें जरूर खिंच लाती है
तुम रहती सदैव नजर के सामने
जैसे सामने ही बैठी है हमें सुनने।
तू तो कम ही बोलती
पर अपने बोल पर कायम रहती
अपने दुखको वो सहन नहीं कर पाती
फिर भी मन ही मन प्रभु की माला जपती।
“प्रभु बस, अब जीने की चाह नहीं “
सदा बताते रहना रास्ता सही
बस यूँही माला जपते जपते जान चली जाय
हमारा मनुष्य जीवन सफल हो जाय।
भगवान ने उसकी प्रार्थना सुन ली
किसी को तकलीफ दिए बिना वो सोली
बस सदा के लिए आँखे बंध करली
सब को पीछे रोते, बिलखते छोड़ चली।
आज सिर्फ याद ही बची
हमने ऐसी कभी नहीं थी सोची
लगता था थोड़ा समय और हमारे बीच सह सकेगी
पर हमारे सोचने की सार्थकता कहाँ होगी?
हसमुख मेहता
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