मेरो दुनिया
बुधवार, २ अक्टूबर २०१९
मेरा बचपन
था एक लड़कपन
साथ में था भोलापन
सब में दिखता अपनापन।
माँ से था बड़ा लगाव
सदैव रहता भाव
रूठ जाना आम बात थी
बड़ी सुहानी लगती रात थी।
मानो पुरे हो जाते मेरे मनोरथ
मुझे समझ में आ जाते सब अरथ
वो मेरे ख़याल में हरदम रहती
उसे ना देखकर में कभी कभी सहम जाती।
माँ ही थी मेरी दुनिया
पर मैंने उसे खूब सताया
थोड़ी थोड़ी बात एम् रूठ जाना
पर थोड़ी ही देरफिर हंसना।
रात गयी और बात गयी
में जल्दी जल्दी सयानो हो गई
बात बीदा करने तक की आ गई
में थोड़ी सी सिमट करकर रह गई।
क्या लडकियां का इतना ही होता है सौभाग्य?
माँ-बाप इसे ही मानते है अहोभाग्य!
रोते रोते बीदा करना
और सारी उम्र उसकी सुख की चिंता करना।
लडकियां भी काम नहीं करती
अपने कुटुंब का सर हमेशा ऊँचा रखती
एक माँ-बाप को छोड़कर दूसरे में हिलमिल जाती
सपनों को संवारकर जिंदगी को खूब सजाती।
हसमुख मेहता
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