मेरा इम्तेहान लेता है।
रोता रहूँ में कब तक?
सोता नहीं में जब तक
दो वक्त की रोटी जब एक नसीब कर पाता
में मोत को अपने करीब पाता।
में बोझ ढोता हूँ
पर कमाता भी हूँ
ये ओझ मेरे लिए बोझ नहीं है
मेरा तो बस जीवन ही यही है।
जीवन में कठिनाई जरूर है
पर हम मगरूर है
जीवन का पूरा संतोष है
‘तृप्त हो हम बस ‘ यही हमारा शब्दकोष है
शरीर तपकर ताम्रवर्ण बन गया है
शरीस मुसाफिरो को ढ़ो कर श्यामवर्ण हो गया है
जिस्म वक्त की चपेट् में है
भूख से पेट बेहाली में है।
सूरजभान आसमान से कहर बरसा रहे है
मानो अगन गोले से दजा रहे है
बदन मानो एक जलती भट्ठी में सेक रहा है
फिर भी में अपने आपको रोक नहीं पा रहा हूँ।
बस अपना परिवार पल जाए
बच्चे जल्दी जल्दी बड़े हो जाय
मेरी नहीं है इतनी आमद और आय
की उनकी पढाई लिखाई हो जाय।
पीछे मुड़के देखना मेरा काम नहीं
आगे ही बढ़ना मेरा ध्येय है सही
उपरवाले ने कुछ तो सही सोचा होगा
उसने मेरे को ऊँचा उठाना होगा।
में मेरे हाल पे विश्वास करता हूँ
जीवनभर एक ही आस लेकर जीता हूं
उपरवाला ही जीवनदाता है
वो सिर्फ मेरा इम्तेहान लेता है।
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