मिला नहीं किनारा
में रह गया बेचारा
भटका में मारा मारा
बनके रह गया आवारा।
चाहा ना था जुदाई
पर हो गयी बिदाई
वो कहीं ओर और हम कहीं ओर!
ना उसने, ना मैंने मचाया थोड़ा सा भी शोर।
मान लिया कही गड़बड़ है
पर साथ में तर्क और बड़बड़ भी है
वो जिद्दी और अडिग रहते है
हम उन्हें देखकर दंग रह जाते है।
वो सूरज जैसे गरम है ओर जोशीले
तो में चाँद जैसा निर्मल और हँसता रहूँ होल होल
उनका पारा सातवे आसमान पर
में रहूँ शांत और जमीं पर।
लगा है धीरे से अपनापन
पर हरकत है जैसे बचपन
कोन आएगा मनाने बारबार
सपने टूटते रहेंगी अनेकबार।
फिर भी हम पहल करते रहेंगे
जब भी मीलेंगे कहते रहेंगे
‘दूर रहना मंजूर नहीं’
पास रहना ही है सही।
चलो एक बार और आजमा लेते है
तक़दीर के पासे को उलटा देते है
तुम थोड़ा चलो हम भी चल देते है
हाथ में हाथ रखकर थोड़ा सा मुस्कुरा देते है।
मंज़िल भले ही पास नहीं
पर आस है अंदर से सही
‘आप हमारे है और सदा रहेंगे’
मिलककर आगे बढ़ेंगे और सह भी लेंगे।
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