फलसफा मालूम ही नहीं
मेरा जीना हराम हो गया है
वक्त पूरा बर्बाद हो गया है
में संझना चाहता हूँ पर वो समझते ही नहीं
आकाश से बादल बरसते ही नहीं।
में ज्यादा पढ़ा नहीं
आगे भी बढ़ा नहीं
पर अपने वचन से कभी मुकरा नहीं
किसी को बली का बकरा बनाया नहीं।
फिर भी संदेह है उनको मुझ पर
चाहत का नाज़ तो है रीझ जाने पर
पर जान बख्शते नहीं
सामने आने पर बात करते नहीं।
उनके ख़याल अपने है
हम्रारे ख़याल पुराने है
पर हम भी तो जमाने से है
हजार तरीके मनाने के है।
‘आरे मान भी जाओ’ हमने कह ही दिया
बातो बातो में हवा का रुख ही बदल दिया
वो कड़वे घूंट पीकर बदला लेना चाहते थे
हम भी उनको सताना नहीं चाहते थे।
नूरा कुस्ती हम जानते नहींृ
रूठे हुए को मनाना हमें आता नहीं ृ
पर एक जरूर जानते है की रूठना बहुत आसान है
मनाना बस की बात नहीं और बहुत ही कठिन है।
बदलते है वो जो ईश्क़ करना ही नहीं जानते
प्यार के झख्म में मरहम लगाना नहीं जानते
वर्ना प्यार का पूरा समंदर यहाँ है
पर हमें डुबकी लगाने का फलसफा मालूम ही नहीं
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