छुपाते छुपती नहीं
पूरी दुनिया ने मोदीजी का लोहा माना
कैसे बढ़ गया आगे एक चाय बेचनेवाला?
कोंग्रेसी देखते ही रह गए
अपने हाथ मलते हि रह गए।
ये कौभांडी लोग भारत की जनता को मुर्ख समझते थे
खोटे वचन देकर भरमा देते थे
उनका ख्याल था ” जनता एक साड़ी और बोतल में बीक जाएगी “
एक बार सत्ता हांसिल हो जाय फिर कहाँ पूछने आएगी?
उनके सपने धरे के धरे रह गए
पुरे हिन्दुस्तान में उनके कारनामे उजागर हो गए
जनता ने ठान लिया “अब बस “
दौड़ादो उनकी बस बहार तक।
पर उनकी अककलपर ताला पड़ा हुआ था
अपनी हार को कबुल करते नहीं बनता था
उनका भरोसा टूट चुका था
उनका राजकीय सपना चकनाचूर हो चुका था।
“उनकी हर बात को नकारो” किसी ने सुझाव दिया
बस फिर क्या था ” तग़लक़ी फरमान कोजामा पहनाया गया
हर बात पे अड़ंगा और हर चीज़ पे गेहराव
नहीं पहचान सके नदीहां बहाव।
कई राज्य सरकार हाथ से चली गयी
जैसे नालेशो की मुहर लग गयी
अब सत्ता का मोह नहीं छूट रहा था
होठोतक आया हुआ प्याला जो छूट गया था।
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