क्या चाहोगे मुझे जीवनभर
परिंदे को हम पिंजड़े में रख नहीं सकते
वो हमारा जज्बा है जिसे हम छुपा नहीं सकते
हमको जरुर लगा है आपका अफ़साना
जिसे हो गयाहै जरुरी आपको सामने बिठाना
हम देखते ही रह गए चेहरे पर गिरी लट को देखकर
वो बारबार कह रही थी पुकार पुकार कर
“कोई तो सुनो मेरे छिपे हुए दुःख दर्द को”
“बस उसे वाचा देना है सबको सुनाने को”
वो सामने बेठी थी अपनी आपबीती के साथ
हम भी बह रहे थे उस कहानी के आसपास
उस की बन्ध आँख में भी थी एक चमक
चेहरा था देदीप्यमान और दिख रही थी दमक
मेरा दिल छलनी हुआ उसकी थोड़ी दबी रोनक देखकर
वो हूर तो ना थी पर आश्चर्यचकित हुआ हुस्न दिखकर
दिल में कितने कितने अरमान लेकर घूमी होंगी
उसकी हर अदाने खुश किया होगा ओर चूमी भी पायी होगी
फिर कि उसकी बातोमे दम है अपने जज्बात को लेकर
उसने हिम्मत नहीं हारी है अपनी बात को लेकर
हिम्मत भी है और इन्सानियत भी है हांसलफजाही के लिए
वरना जिंदगी में क्या रखा है ख़ुशी पाने के लिए?
यह था अंजाम ख़ुशी पाने का
आज भी याद है पदचाप उसके आने का
में पूछता रहता हु’क्या चाहोगे मुझे जीवनभर ‘?
वो चुप सी हो जाती है यह सुनकर
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