कोई याद
बुधवार, २२अगस्त १९१८
तेरी कोई याद आती नहीं
पर उसका कोई विवाद भी नहीं
जाने का फैसला तेरा था
मेरा तो बस वोही बसेरा था।
जरूर आर्थिक तंगी रही होगी
तेरे मन को काफी बेचेन कर रही होगी
मैंने बहुत कोशिश की तेरे को खुश करने की
पर तू ने तो ठान ही ली थी मेरा साथ छोड़ने की।
मेरे सामने अंधेरा छा गया
मैं भीतर से तिलमिला गया
कहने की हिम्मत ही नहीं हुए
मेरी सब कोशिशे धराशायी हुई।
संसार एक छोटी सी नाव है
उसमे भावनाओं के बहाव है
खुशियों के हावभाव है
एक दूसरे के प्रति समभाव है।
उसका मुझे छोड़ जाने का फैसला अप्रत्याशी था
ना तो में बेवफा था और नाही ऐयाशी में लिप्त था।
मेरा रहा सहा विश्वास डगमगा गया
जब वो जाने लगी तो में हक्काबक्का रह गया।
मन को मैंने झंझोड़ा
कोशिश की थोड़ा थोड़ा
पर उसके चेहरे पर मुजेतिरस्कार की झलक देखने को मिली
मेरे संसार की नांव तो बडे झटके से हीली।
हसमुख अमथालाल मेहता
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