आनेवाला तूफ़ान
रविवार, १७ जून २०१८
जिंदगी का क्या ठिकाना?
नहीं तो फिर क्या डरना?
मना नहीं है जीना!
बस टिक कर ही हमने रहना।
आदमी मजबूर है
पर सबुरी रखता है
उसे पता है की क्या करना है?
जिसे एक चुनौती समज कर सामना करना है।
उसकी हालत एक पंखी की तरह है
जो घायल तो है पर आस टिकाए है
“आज नहीं तो कल” सब ठीक हो जाएगा
वक्त के बदलते ही सुधार आ जाएगा।
ये इंसानी फलसफा है
चाहे कोई कितना भी खफा क्यों ना हो?
दिल साफ़ तो हर दुविधा ख़त्म
नहीं छाएगा कभी दिलों में मातम।
इंसान का एक ही भरोसा है
और बड़ी आशा भी है
उसका ईमान और विश्वास उसे डिगने नहीं देता
आनेवाला तूफ़ान उसे और ताकतवर बनाता है।
हसमुख अमथालालमेहता
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