अपनी बंदगी में
खोना मुझे गंवारा नहीं
रोना क्यों? मुझे पछतावा भी नहीं
चाहा दिल से फिर भी पा ना सका
फिर क्यों कोई आके मुझे अपना बनाने लगा
उसकी भी तो थी यही भावना
मुझे बहुत अच्छी लगी प्रस्तावना
दिल ने सोचा मान भी लेते है
किसी को अपने दिल से अपना लेते है
ना जाने फिर क्या हो गया
पूरी किश्ती को भंवर अपने में समा गया
सपना चूर चूर होकर रेह गया
में दुखी होकर दांग रेह गया
उसकी तो थी यही है प्रस्तुति
पर मन को है खूब है जताती
बारबार मन पटल पर आ जाती
फिर खूब दुखी कर के मुड़ जाती
मुझे ना पाने का कोई गम नहीं
पर ऐसे हालात मंजूर भी नहीं
उसका मुझसे अलग हो वास्तविक भी नहीं
कुदरत के बनाये नियम के मुताबिक भी नहीं
में चाहता हूँ कि परिस्थिति से लड़ जाऊ
सबको अपना मनोरथ समजा पाउ
उसीको मैंने चाहा था अपने मनोमन
अब असल में करना पड रहा है मनोमंथन
में डूब जाता सुनहरे सपने में
पाता खोया खोया सा जीवन में
जब ना मिल पाती वो असली जिंदगी में
में दुआ पूरी कर ना पाता अपनी बंदगी में
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