मिलता नहीं, उसे जग सारा
जो ढूंढता फिरे, मारा मारा
सब कहते हैं, नहीं कोई तारा
अपार दुःख है और स्वााद खारा।
सोना, चांदी मनको भाये
मन हरखे और तन को लुभाये
हम सब है बस मिटटी के पुतले
धरती हमारी बस आंसू उगले।
करनी हमारी कथनी से अलग
नहीं मेल खाता कोई रागनी के संग
जो में बोलता रसभरा कथन है
अनजाने में पीयो तो, विष मंथन है।
दिखाने को हमारे पास धन दौलत है
देने को कोई नहीं ऐसी मोहलत है
सबसे छीनना स्वभाव बन गया है
लूट के घर भरना मकसद हो गया है।
बाकी सब जिए या फिर मर जाए
हमारे सर पर चाहे जो रेग जाये
न कोई व्यथा है न कोई नाराजगी
बस सिर्फ पास है तो वो है आवारगी।
सुनामी आई, बाढ़ भी आई
साथ में बहुत साऱी कठिनाई ले आई
जग सारा रोया मैंने खूब की कमाई
रौशनी से घर जगमगाया और दौलत ले आई
मुझे रोष नहीं आता गरीबी को देखकर
मुझे रंज होता है गरीब को सामने पाकर
उसके चेरेह पर गरीबी का दर्द है
पर लड़ने का सामर्थ्य बिलकुल नहीं है।
संसार में सब नंगे और जूठे है
बोलते कुछ और करते कुछ और है
सही तो ये होता की कमल की तरह खिलते रहो
चारो और कीचड़ हो फिर भी सुगंध बिखरते रहो
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