मन साफ़ करता है।
तू कैसे सोया होगा?
तेरा दिन कैसे गुजरा होगा?
माँ सोच रही है अपने बिछाना पर
बेटे ने दिखा दिया है रास्ता बाहर।
वो सोच रही है, ये कैसा बदलाव आया है?
पिता या माता के सामने ये कैसा भाव उमड़ आया है?
क्यों उनकी खस्ता हाल हुई जा रही है?
आए दिन उनके उपहास की छबि क्यों छप रही है?
आप सब बच्चे यह कहकर ले गये घर
‘हम को बुरा लग रहा है अपनी हरकत पर’
मुझे ताज्जुब तो हुआ पर नजरअंदाज कर दिया
उसने जहां जहां कहा, वहां दस्तखत कर दिया
कुछ दिन बाद ही आपने रंग दिखाने शुरू कर दिए
मारपीट तो सहज बात हो गयी, पर गालीगलौच भी सामने आ गयी
में सहमी सी देखती रही, और अपने आपको कोसती रही
क्या यही मेरी औलाद जिनके लिए में पूरी पूरी रात जागती रही।
‘तू क्यों हमारे पर बोज बनी है’ बहु ने बाल पकड़ कर घिरा दिया
लड़के ने मारा ओर पिटा, और फिर घरमें से धक्का दे दिया
में कभी इतनी सहमी नहीं थी और फिर भगवान के भरोसे चल दिया
आज आसरा तो नहीं था, पर गैरो का मन से अभिवादन कर दिया
आजकल में आश्रम में हूँ, पर कभी गैर नहीं लगता
सब के पास दुःख है पर बोज नहीं लगता
ताज्जुब के साथ मिश्रित भाव चेहरे पे परेशान करते है
फिर भी हम उनके लिए दुआ करते है और एहसान व्यक्त करते है
क्या हम मान ले हर माँ का यही हस्र होनेवाला है?
क्या हर संतान अपनी माँ को बेदखल करने वाला है?
आश्रम, आश्रम ही होता है फिर भी यहां अमन है
हर एक अपना दुःख बांटता है और मन साफ़ करता है।
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