भगिनी का इन्तेजार है
तुम तो हो सांवले मोहना
दिल छेदन्ता मन भावना
करे मन यूँही पुकार
क्यों ना हो मंन की मुराद साकार।
मेरे मनको भाये रंग सांवला
मन भी हो रहे बड़ा उतावला
आज क्यों मुझे भाये है काली कोयल?
कोकिल कंठी बिराजे मधुवन।
सब सो रहे है तू क्यों मचावे शोर?
मेरे मनको आवे उद्वेग और
में जानु तू बड़ी है, चाहनेवाली
मन को चेन और भोर से उठाने वाली।
में उठ चूका पर उब नहीं चूका हु
रातभर सोया नहीं इसलिए थका हूँ
बस एक प्याली चाय की मील जायं इस फिराक में हूँ
मेरी निगाह बिलकुल सामने और देखने को इच्छुक हूँ।
‘चाय पिओगे ‘ एक आवाज आती है
मुझे बिलकुल नींद से जगा देती है
में भोचक्का सा उसे निहारता रहता हु
कोयल मेरे सामने है फिर भी सपने में राचता रहता हूँ
वो मेरे सपनो कि रानी बन चुकी है
सांवली सी है पर महारानी बन चुकी है
खेर अब उसका ‘हां कहना’ ही मेरा मकसद है
जीवन मे एक संगिनी मील जाय यही मुराद है
उसकी आवाज में मधुरपन है
दिखलाने को बहुत ही अपनापन है
भाग्यशाली होगा जिसका वो हाथ थामेगी
शाम सुहानी और राते बेशक रंगीनी होगी
में भूल जाता हूँ चाय की चुस्की लेना
बस सपना सा लगता है मौसम सुहाना
उसका पूछ लेना ही एक अच्छी निशानी है
वाग्दत्ता तो वे है ही पर अब भगिनी का इन्तेजार है
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