कमियां बहुत है
जब आप खुद कह रहे है
‘ कमियां बहुत है मुझ में’
आप अपने को कोस नहीं रहे
बस अपनी बोखलाहट को छिपा रहे।
कोई क्यों गिनाने लगा।
ये तो आप को अपने आप लगा
वैसे इस दुनिया में कोई परिपूर्ण नहीं
कुछ न कुछ तो है उनमे कमी।
किसीके केहने से कोई फर्क नहीं पड़ता
कोई कहेगा तो अपना गर्व खंडित होता
‘वो ऐसा कैसे कह सकता है मेरे बारे में ‘
ध्वेश की अगन प्रज्वलित हो जाती है मन में।
यदि में अपने आपको सुधार पाता
तो जनता को और मित्र वर्ग को बता पाता
मैंने कोशिश किया है चंलने की
अब क्या जरुरत है दिखावा करने की?
आपने किसी को थप्पड़ रसीद कर दी
उसने आपको तमीज़ सिखा दी
यह कोई हल नहीं अपनी इच्छाशक्ति का
क्या भला होनेवाला है इस से आपका और दूसरों का!
कमी मुझ मे है सही
पर में खिलाडी नहीं
थोड़ी सी सूझबूझ से काम निकाल लूंगा
पर अपने आप पर बट्टा नहीं लगने दूंगा।
यदि ये जज़्बा आप में है
यह मानकर चले ‘आप अच्छे इंसान है ‘
आप में समाविष्ट करने की अद्भुत ताकत है
आप सदैव संतुष्ट रहनेवाली औकात रखते है।
ये मेरा आंकलन नहीं
पर लगता है सही
आप इम्तेनान से अपने आप को अलग रखें
आप भी देखें फिर ‘राम रखें उसको कौन चखे ‘
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