उसके अलावा अब में क्या मानु
पनिहारी दिल से कभी ना हारी
पर दिल दे बेठी व्रज की नारी
सुधबुध खो बैठी और धुन पर हारी
हार गयी उस चितचोर पर वारी
क्यों पाँव मेरे आगे बढते नहीं?
ऐसी धुन मैंने कभी सुनी ही नहीं
ये क्या हो गया है मुझको मालुम नहीं?
पाँव कहा मेरे क्यों मानते नहीं
में थी अल्हड और गाँव की गौरी
आगे रहते थे छोरे और पीछे छोरी
मन मेरा काबु मे और कभी ना रही छिछोरी
पर अब क्या हो रहा में सोचु अकेली
मैंने ना जाना प्रीत क्या होती है?
इसमें न चलती और मनमानी रहती है
लाख की कौशिश पर सुध ना आई
विचलित मनको न मना ना पाई
श्याम कहो उन्हें या मुरली बजैया
बस मेरे दिल के है वो ही खेवैया
में क्या जानू आगे क्या होगा?
बस येही अर्ज है उन्हें सुनना होगा
में वारी जाऊ उसकी धुनपर
पाँव ठहरते नहीं अब जमींपर
वो ही होगा मेरा हमसफ़र और जानू
उसके अलावा अब में क्या मानु
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