तमसो मा ज्योतिर्गमय ॥ आफताब आलम ‘दरवेश’
काँटे भरे हैं राहों में
औ’ लक्ष्य दूर हमारा,
नाव फँसी मझधार में
औ’ दिखता नहीं किनारा ॥
तमसो मा ज्योतिर्गमय
अस्तो मा सदगमय….
चलता चला मैं जा रहा
है दूर कहीं सवेरा,
युक्ति नहीं कोई यहाँ
कैसे दूर हो अँधेरा ॥
तमसो मा ज्योतिर्गमय
अस्तो मा सदगमय….
पँख नहीं परवाज नहीं
ये प्रयास है हमारा,
हताश नहीं, नीराश नहीं
दृढ़ विश्वास है हमारा ॥
तमसो मा ज्योतिर्गमय
अस्तो मा सदगमय….
अवाज दे रहा हूँ मैं
हूँ तुमको ही पुकारा,
आतंक के इस सागर में
शांति कलश है हमारा ॥
तमसो मा ज्योतिर्गमय
अस्तो मा सदगमय….
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